मेहर में वृद्धि या कमी (Increase or Decrease in Mehr/Dower) हिबा-ए-मेहर (Hiba-e-Mehr)

मेहर में वृद्धि या कमी (Increase or Decrease in Mehr/Dower)-हिबा-ए-मेहर (Hiba-e-Mehr)

📌पति विवाह के बाद किसी भी समय मेहर में वृद्धि कर सकता है लेकिन पति को मेहर की धनराशि या संपत्ति में कमी करने का अधिकार नहीं है।
लेकिन विवाह के बाद पत्नी अपनी स्वतंत्र सहमति से मेहर की पूरी धनराशि छोड़ सकती है, या कम कर सकती है।
📌एक मुस्लिम पत्नी जिसने यौनावस्था की आयु (Age Of Puberty) प्राप्त कर ली है, वह मेहर में पूर्ण या आंशिक रूप से छूट देने में सक्षम है, भले ही उसने Indian Majority Act 1875 के तहत वयस्कता की आयु (Age of Majority) प्राप्त ना की हो।
📌पत्नी के द्वारा मेहर में दी गई छूट को हिबा-ए-मेहर (Hiba-e-Mehr) कहते हैं।
📌पत्नी द्वारा मेहर में दी गई ऐसी छूट स्वतंत्र सहमति (Free Consent) से दी जानी चाहिए।
नूर निशा बनाम ख्वाजा मोहम्मद के वाद में पत्नी ने मेहर की राशि में छूट उस समय दी थी जबकि उसके पति की मृत्यु हो गई थी और उसका मृत शरीर घर में था।
निर्णय हुआ कि उस समय पत्नी, पति की मृत्यु के कारण मानसिक दुख के अधीन थी उस समय दी गई छूट स्वतंत्र सहमति में नहीं कही जा सकती।

BY ZEENAT SIDDIQUE 


मेहर के प्रकार (Types of Dower), Mehr-e-Misl, Mehr-e-Musa, Mu_ajjal / Prompt Dower (तुरंत देय मेहर), Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर)

मेहर के प्रकार (Types of Dower)-

मेहर दो प्रकार की होती है:

1) उचित मेहर या अनिश्चित मेहर या रिवाज़ी मेहर (Proper Dower or Unspecified Dower)➡

इसे Mehr-e-Misl के नाम से भी जाना जाता है।
यदि मेहर की राशि विवाह के समय निश्चित ना की गई हो तब उस स्थिति में पत्नी उचित यानी अनिश्चित मेहर की हकदार होती है, चाहे विवाह कि संविदा इस शर्त पर हो, कि पत्नी मेहर की प्राप्ति के लिए कोई वाद दायर नहीं करेगी।

रिवाज़ी मेहर का निर्धारण निम्न तरीकों से होता है:
1) पत्नी का व्यक्तिगत गुण।
2) पत्नी के पिता का सामाजिक स्तर।
3) पत्नी के पितृ कुल की स्त्रियों को दिया गया मेहर।
4) पति की आर्थिक स्थिति।

📌शिया विधि में रिवाज़ी मेहर की अधिकतम सीमा 500 दिरहम है। शिया विधि में 500 दिरहम से अधिक का मेहर अमान्य होता है।
   1 दिरहम = 17.48 Rs
  500 दिरहम =  (17.48 × 500) ➡8,740/-Rs
📌सुन्नी विधि में रिवाज़ी मेहर की कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं है।

2) निश्चित मेहर (Specified Dower)-

📌इसे Mehr-e-Musa / Mehr-e-Tafweez के नाम से भी जाना जाता है।
📌यदि विवाह की संविदा में मेहर की धनराशि या संपत्ति का उल्लेख होता है तो ऐसा मेहर निश्चित मेहर कहलाता है।
📌यदि विवाह के पक्षकार वयस्क व स्वस्थचित्त है, तो वह मेहर की धनराशि विवाह के समय खुद तय कर सकते हैं।
📌यदि विवाह संविदा विवाह के पक्षकार के संबंध में उनके अभिभावक या कानूनी संरक्षक द्वारा की जाती है, तो अभिभावक या कानूनी संरक्षक ही विवाह के पक्षकारों के अवयस्क होने की अवस्था में मेहर की धनराशि तय कर सकते हैं।
📌मेहर की धनराशि लिखित व मौखिक दोनों प्रकार की हो सकती है।
📌किसी अभिभावक द्वारा निश्चित की गई मेहर की धनराशि के भुगतान के लिए कभी भी अभिभावक व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होगा।

शिया विधि में अगर अवयस्क (Minor) का विवाह अभिभावक द्वारा संपन्न कराया जाता है तो पति के असमर्थ होने पर मेहर के भुगतान के लिए अभिभावक व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होंगे।

निश्चित मेहर के प्रकार (Types Of Specified Dower)-

निश्चित मेहर दो प्रकार की होती है:-
1) Mu_ajjal / Prompt Dower (तुरंत देय मेहर)
2) Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर)

1) Mu_ajjal / Prompt Dower (तुरंत देय मेहर)-

निश्चित मेहर में अगर यह तय हुआ है की विवाह पूर्ण हो जाने के बाद पत्नी जब चाहे मेहर की मांग कर सकती है तब ऐसा मेहर Mu_ajjal / Prompt Dower (तुरंत देय मेहर) कहलाएगा।इसका अर्थ यह नहीं है कि विवाह के तुरंत बाद पत्नी को इस मेहर की मांग कर लेनी चाहिए बल्कि इसका अर्थ यह है कि पत्नी इस प्रकार के मेहर कि कभी भी मांग कर सकती है, और जब भी वह मेहर की मांग करेगी पति को मेहर का भुगतान करना ही होगा।

2) Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर)-

मृत्यु या विवाह विच्छेद या Agreement के द्वारा किसी निश्चित घटना के घटित होने पर दिया जाने वाला मेहर Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर) कहलाता है।उदाहरण - पत्नी व पति के बीच यह तय हुआ है कि जैसे ही पति दूसरा विवाह करेगा उसे तुरंत मेहर का भुगतान करना पड़ेगा।
मृत्यु या विवाह विच्छेद या एग्रीमेंट के द्वारा किसी निश्चित घटना के घटित होने से पूर्व पत्नी इस प्रकार के मेहर की मांग नहीं कर सकती है। बल्कि केवल पति ही ऐसा मेहर पत्नी को इन घटनाओं से पूर्व प्रदान कर सकता है।

📌 यदि मेहर विवाह के समय निश्चित हो गया है तो कबीन नामा (Kabeen-Nama) में यह वर्णित रहता है कि मेहर का कितना भाग Mu_ajjal / Prompt Dower (तुरंत देय मेहर) होगा वह कितना भाग Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर) होगा।

📌 यदि कबीन नामा (Kabeen-Nama) में यह वर्णित न हो कि मेहर का कितना भाग Mu_ajjal / Prompt Dower (तुरंत देय मेहर) होगा वह कितना भाग Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर) होगा?

        इस स्थिति में सुन्नी विधि में मेहर का आधा भाग Mu_ajjal / Prompt Dower (तुरंत देय मेहर) व आधा भाग Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर) मान लिया जाएगा

        जबकि शिया विधि के अंतर्गत मtहर की पूरी राशि Mu_vajjal / Deferred Dower (स्थगित मेहर) मानी जाएगी

 BY ZEENAT SIDDIQUE


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MEHAR-E-MISL | MEHAR-E MUSA | मेहर के प्रकार (Types of Dower) # PART 2 VIDEO LECTURE

MEHAR / मेहर (Dower) DEFINITION, OBJECTS

मेहर(Dower)-

अब्दुल कादिर बनाम सलीमा के वाद में 'जस्टिस महमूद' ने कहा कि "मुस्लिम विधि में मेहर वह धनराशि या अन्य कोई संपत्ति है, जो पति विवाह के प्रतिफल के रूप में पत्नी को देने या अंतरण करने का वचन देता है, और जहां मेहर स्पष्ट रूप से निश्चित नहीं किया गया है, वहाँ भी पति विवाह के अनिवार्य परिणाम के रूप में कानूनी मेहर का अधिकार पत्नी को प्रदान करता है।

मेहर की परिभाषा (Definition of Dower)-

'मेहर वह धनराशि या संपत्ति है जो विवाह के फलस्वरुप पति द्वारा पत्नी को उसके प्रति सम्मान प्रकट करने के उद्देश्य से प्रदान की जाती है।


मेहर के उद्देश्य (Objects of Dower)-

📌मुस्लिम विधि में मेहर का उद्देश्य विवाह के अंतर्गत एक ऐसा माध्यम प्रदान करना है, जिसके द्वारा पति अपनी पत्नी की प्रतिष्ठा के सत्य को अभिव्यक्त करें।
📌पति द्वारा पत्नी को मेहर केवल पत्नी के लाभ व उसके स्वतंत्र उपभोग के लिए प्रदान किया जाता है इस रूप में मेहर का अर्थ होता है पत्नी के लिए किसी संपत्ति या धन राशि की व्यवस्था करना ताकि विवाह विच्छेद के बाद वह असहाय ना रहे।
📌यह पति के तलाक देने के अप्रतिबंधित अधिकार पर अप्रत्यक्ष रूप से अंकुश लगाता है क्योंकि तलाक के बाद पति को पूरा मेहर का भुगतान करने का दायित्व है अतः तलाक से पूर्व पति अपने इस दायित्व पर अवश्य ही विचार करेगा।

BY ZEENAT SIDDIQUE

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मुस्लिम विवाह विच्छेद के प्रकार Kinds of Dissolution of Muslim Marriage in hindi

मुस्लिम विवाह विच्छेद के प्रकार

(Kinds of Dissolution of Muslim Marriage)- 

📌यह 2 प्रकार से होता है-
#ईश्वर कृत्य द्वारा (By Act Of God)➡जब विवाह के पक्षकार में से किसी की भी मृत्यु हो जाती है विवाह विच्छेद हो जाता है तो वह ईश्वर कृत्य द्वारा (By Act Of God) विवाह विच्छेद कहा जाता है।

##पक्षकारों द्वारा  (By Act Of Parties)➡जब विवाह के पक्षकार में से किसी के भीतर द्वारा या दोनों के द्वारा विवाह विच्छेद हो जाता है तो वह पक्षकारों द्वारा  (By Act Of Parties) विवाह विच्छेद कहा जाता है। यह 2 प्रकार से होता है-
A] बिना न्यायिक कार्यवाही द्वारा (Without Judicial Proceedings)
B] न्यायिक कार्यवाही द्वारा (By Judicial Proceedings)

A] बिना न्यायिक कार्यवाही द्वारा (Without Judicial Proceedings)👉

 📌जब पक्षकार खुद अपने मन से तलाक की घोषणा करते हैं उसे बिना न्यायिक कार्यवाही के विवाह विच्छेद कहा जाता है।
📌यह 3 प्रकार से होता है
क) पति के द्वारा (By Husban)
ख) पत्नी के द्वारा (By Wife)
ग ) आपसी सहमति से (By Mutual Consent)

क) पति के द्वारा विवाह विच्छेद (Divorce By Husband)➡

पति के द्वारा विवाह विच्छेद 3 प्रकार से होता है-
a) तलाक (Talaq)
b) इला (Ila)
c) जिहार (Zihar)

a) तलाक (Talaq)
📌तलाक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है - 'निर्मुक्त करना' अर्थात् 📍"पति द्वारा विवाह संविदा का निराकरण करना"।
📌पति को मुस्लिम विधि के अनुसार बिना किसी कारण के पत्नी से तलाक लेने का अधिकार है। 
📌तलाक दो प्रकार का होता है
*तलाक-उल-सुन्नत (Revocable Talaq)
**तलाक-उल-विद्द्त (Irrevocable Talaq)

*तलाक-उल-सुन्नत (Revocable Talaq)➡ तलाक-उल-सुन्नत एक प्रतिसंहरणीय तलाक है, क्योकि तलाक के शब्दों को उच्चारित करने के बाद इसे वापस लेने व तलाक को निरस्त करने की गुंजाइश बनी रहती है। यह दो तरीके का होता है-
1) तलाक-अहसन (Most Proper)
2) तलाक–हसन (Proper)

1) तलाक-अहसन (Most Proper)➡ तलाक-अहसन की औपचारिकताये निम्न है –
●तलाक देने के लिए पति को पत्नी के ‘तुहर’ अर्थात शुद्ध काल में केवल एक बार पत्नी को संबोधित करते हुए पति कहे  'मैंने तुम्हे तलाक दिया' उच्चारित करना पड़ता है। तलाक उच्चारित हो जाने के पश्चात पत्नी तीन माह तक इद्दत का पालन करती है इद्दत की अवधि में पत्नी व पति के बीच कभी समझौता (Sexual Intercourse) हो जाता है तो तलाक निरस्त हो जाएगा और विवाह भंग होने से बच जाता है। लेकिन यदि इद्दत काल पूर्ण हो गया और उन दोनों के बीच समझौता न हो सका तो इद्दत के ख़त्म होने पर तलाक पूरा हो जाता है।
●कोई भी स्त्री जब मासिक धर्म में नहीं रहती है तो वह उसका तुहर काल कहलाता है।
2) तलाक–हसन (Proper)➡ तलाक-हसन की औपचारिकताये निम्न है –
●पत्नी के तुहर काल में पति तलाक को एक बार उच्चारित करे तथा इस पूरे शुद्ध काल में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष समझौता न हो।
●पत्नी के दूसरे तुहर काल आने पर पति फिर एक बार तलाक को उच्चारित करे, दूसरे शुद्धकाल में भी पति द्वारा तलाक का प्रतिसंहरण न हो।
●पत्नी को तीसरे तुहरकाल आने पर पति पुनः तलाक की घोषणा करे इस तीसरे व अंतिम घोषणा के बाद तलाक पूर्ण मान लिया जाएगा।

**तलाक-उल-विद्द्त (Irrevocable Talaq)➡ इसे तलाक–उल–वेन या तिहरा तलाक (Triple Talaq) भी कहते हैं। यह एक अप्रतिसंहरणीय तलाक है, क्योकि तलाक के शब्दों को उच्चारित करने के बाद इसे वापस लिया या तलाक को निरस्त नहीं किया जा सकता है। और पति-पत्नी में समझौता होने की गुंजाइश नहीं रहती है। यह तलाक का कठोरतम रूप है। पैगम्बर मुहम्मद ने इस प्रकार के तलाक का कभी अनुमोदन नहीं किया और न ही इसका प्रचलन उनके जीवन काल में हो पाया। सुन्नी विधि के हनफी स्कूल में इसे मान्यता प्राप्त है, शिया विधि में इसे मान्यता प्राप्त नहीं है इसकी निम्न औपचारिकताये है-
●तलाक देने के लिए पति को पत्नी को संबोधित करते हुए मैंने तुम्हे तलाक दिया, मैंने तुम्हे तलाक दिया, मैंने तुम्हे तलाक दिया उच्चारित करना पड़ता है। पति द्वारा मात्र इन शब्दों के एक ही बार में उच्चारित करने पर तलाक पूर्ण हो जाता है।
☆ट्रिपल तलाक को शायरा बानो के वाद में असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है।

b)इला (Vow of Continence)➡इला की विधि से विवाह भंग करने के लिए, पति शपथ लेता है कि वह पत्नी से सम्भोग नहीं करेगा। इस शपथ के पश्चात् यदि पति व पत्नी के बीच 4 माह तक सम्भोग नहीं होता है तो 4 माह के पूर्ण हो जाने पर विवाह विच्छेद बिना किसी कार्यवाही के पूर्ण हो जाएगा और इन चार माह के अन्दर उनके सम्बन्ध ठीक हो जाता है तो यह शपथ निरर्थक हो जायेगा।

c)जिहार (Injurious Assimilation)➡जिहार का अर्थ है – ‘आपत्तिजनक तुलना’। इस विधि से विवाह-विच्छेद करने के लिए पति अपने पत्नी की तुलना किसी ऐसी महिला से करता है जिससे विवाह करना उसके लिए निषिद्ध है। पति अपनी पत्नी की तुलना माता या बहन से करता है, इस कथन के बाद 4 माह का समय पूर्ण हो जाने पर विवाह विच्छेद हो जाएगा इसी बीच पति अपने इस कथन को वापस ले लेता है तो यह कथन निरस्त हो जायेगा।

ख) पत्नी द्वारा विवाह विच्छेद (Divorce by Wife)➡

मुस्लिम विधि में पत्नी द्वारा विच्छेद पति द्वारा तलाक के अधिकार को पत्नी में प्रत्यायोजित करने पर अर्थात तफवीज के अंतर्गत होता है |पत्नी मात्र अपनी स्वेच्छा से विवाह विच्छेद करने में सक्षम नहीं है।
तलाक-ए-तफवीज (Delegated Talak)➡ मुस्लिम पति को तलाक द्वारा विवाह विच्छेद करने का इतना सम्पूर्ण असीमित अधिकार प्राप्त है कि वह इस अधिकार का स्वंय न करके इसे किसी अन्य व्यक्ति में प्रतिनिहित करके उसे यह अधिकार प्रदान कर सकता है। सामान्यतः तलाक के अधिकार को पति द्वारा अपनी पत्नी में ही प्रतिनिहित करने का प्रचलन है, ऐसी स्थिति में पत्नी भी इस प्राधिकार के अंतर्गत तलाक दे सकती है और यह उसी प्रकार मान्य तथा प्रभावी होगा जैसा की स्वंय पति द्वारा दिया गया तलाक। पति तलाक देने के पत्नी के अधिकार को चाहे तो हमेशा के लिए सौप सकता है या कुछ निश्चित अवधि के लिए।पति द्वारा पत्नी को तलाक का अधिकार सौप देने पर भी पति का स्वंय का तलाक देने का अधिकार बना रहता है।

ग) पारस्परिक सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद (Divorce by Mutual Consent)➡  

पारस्परिक सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद दो प्रकार से हो सकता है –
(1)खुला
(2)मुबारत
(1) खुला (Khula)➡विधि की शब्दावली में खुला का मतलब है - पति की सहमति से उसे (पति को) कुछ मुआवजा देकर पत्नी द्वारा विवाह-विच्छेद।
मुंशी बुजलुल रहीम बनाम लतीफुन्निसा के प्रसिद्ध वाद में प्रीवी कौंसिल ने कहा कि खुला विवाह विच्छेद का एक तरीका है जिसमे पत्नी वैवाहिक बंधनों से अपने को निर्मुक्त करने के लिए पहल करती है छुटकारा पाने के एवज में पत्नी अपने पति को कुछ न कुछ प्रतिफल देती है या प्रतिफल स्वरूप कुछ राशि या संपत्ति प्रदान करने का अनुबंध करती है।
विधिमान्य खुला की आवश्यक शर्त ➡
📍पति तथा पत्नी स्वस्थचित्त तथा वयस्क हो।
📍पति व पत्नी दोनो की स्वतंत्र सहमति आवश्यक है।
📍खुला का उपबंध प्रस्ताव तथा स्वीकृति द्वारा पूर्ण होना चहिये।
📍खुला में पत्नी द्वारा पति को मुआवजा व क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिफल का दिया जाना आवश्यक है।
(2) मुबारत (Mubarat)➡मुबारत शुद्ध रूप से परस्पर अनुमति द्वारा विवाह-विच्छेद माना जाता है।मुबारत के अनुबंध में विवाह-विच्छेद का प्रस्ताव पति द्वारा भी किया जा सकता है और पत्नी द्वारा भी। दूसरे पक्ष द्वारा इसे स्वीकार कर लिए जाने पर विवाह-विच्छेद पूर्ण हो जाता है खुला की भांति मुबारत में भी पति व पत्नी का सक्षम होना आवश्यक है।


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Nature of Muslim Marriage in Hindi for LLB students

Nature of Muslim Marriage 
(मुस्लिम विवाह की प्रकृति)
मुस्लिम विवाह की प्रकृति के विषय में विधिवेत्ताओं के भिन्न-भिन्न विचार हैं।
कुछ मानते हैं मुस्लिम विवाह पूरी तरह से Civil Contract  है।
जबकि कुछ अन्य विधिवेत्ता मानते हैं कि मुस्लिम विवाह एक धार्मिक संस्कार है।
Muslim Marriage as a Civil Contract 
Legal Aspect
कुछ विधिवेत्ता ने मुस्लिम विवाह को केवल Civil Contract बताया है और उनके अनुसार यह धार्मिक संस्कार नहीं है यह विचार इस तथ्य पर आधारित है कि Contract  के सभी आवश्यक तत्व (Essential Elements) मुस्लिम विवाह में मिलते हैं जैसे-
1)Proposal & Acceptance (प्रस्ताव एवं स्वीकृति)-
विवाह में Contract  के समान है 'Contract Ijab' यानी प्रस्ताव (Proposal) एक पक्ष द्वारा और दूसरे पक्ष द्वारा 'कबूल'  यानी स्वीकृति Acceptance होना आवश्यक है।
2)Free Consent (स्वतंत्र सहमति)-
विवाह कभी भी बिना स्वतंत्र सहमति के नहीं हो सकता है अर्थात ऐसी सहमति जो Undue Influence, Fraud, Coercion, Misrepresentations द्वारा प्राप्त नहीं की गई हो।
3)Consideration (प्रतिफल) -
मुस्लिम विवाह में मेहर संविदा (Contract) के Consideration (प्रतिफल) के समान होता है।
4)Competency Of the Parties Of Contract (संविदा के पक्षकारों की सक्षमता)-
यदि कोई संविदा (Contract) अवयस्क (Minor) की ओर से उसका अभिभावक करता है
तब अवयस्क (Minor) को यह अधिकार है कि जब वह वयस्क (Major) हो जाए
तब वह उसे निरस्त कर सकता है।
इसी प्रकार Muslim Marriage में यदि Marriage  अवयस्कता की अवस्था (Age of Minority) में अभिभावक की सहमति से हुआ हो तो वयस्क (Major) होने के बाद शादी निरस्त की जा सकती है।
5)Agreement यदि Muslim Marriage के पक्षकार Marriage Contract के बाद कोई करार (Agreement) करते हैं, जोकि युक्तियुक्त (Reasonable) हो और मुस्लिम विधि (Muslim Law) की नीतियों (policies) के विरुद्ध ना हो, तो वह (Agreement) विधि द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) होता है और यही स्थिति Contract में भी होती है।

RELATED CASES
ABDUL KADIR V SALIMA
अब्दुल कादिर बनाम सलीमा
इस बाद में न्यायाधीश महमूद ने कहा "मुस्लिमों में विवाह शुद्धतः एक संविदा (Contract) है यह कोई धार्मिक संस्कार नहीं है"

Muslim Marriage as a Religious Sacrament

Social Aspect
कोई व्यक्ति एक साथ ही अनगिनत Contracts कर सकता है।
लेकिन Muslim Law के अंतर्गत एक पुरुष 4 से अधिक स्त्रियों से विवाह नहीं कर सकता है।

Religious Aspect 

Muslim Law में विवाह का धार्मिक पहलू भी है। कुरान में प्रत्येक सक्षम मुस्लिम को अपनी इच्छित स्त्री से विवाह करने का निर्देश दिया गया है।
अतः बिना किसी उचित कारण के अविवाहित (Unmarried) रह जाना, कुरान में दिए निर्देशों का उल्लंघन है व अधार्मिक कृत्य (Non-Religious Act) है।
स्वयं मोहम्मद पैगंबर ने भी विवाह किया था।
अतः यह पैगंबर मोहम्मद का सुन्नत है।
जिसका अनुसरण करना प्रत्येक मुस्लिम का धार्मिक कर्तव्य है।

Conclusion 
अनीस बेगम बनाम मुस्तफा हुसैन

इस केस में न्यायाधीश शाह सुलेमान ने एक अत्यंत संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए, यह निर्धारित किया कि मुस्लिम विवाह ना तो पूर्णता Civil Contract है और ना ही Religious Sacrament (धार्मिक संस्कार)।
 बल्कि दोनों का सम्मिश्रण है।


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                                                        by Zeenat Siddique

Essential Element of Muslim Marriage in hindi for llb

Essential Element of Muslim Marriage A] सक्षम पक्षकार (Competence Parties) – 1) उसने यौनावस्था की आयु (Age of Puberty) प्राप्त कर ली हो। ...