Nature of Muslim Marriage
(मुस्लिम विवाह की प्रकृति)
मुस्लिम विवाह की प्रकृति के विषय में विधिवेत्ताओं के भिन्न-भिन्न विचार हैं।
कुछ मानते हैं मुस्लिम विवाह पूरी तरह से Civil Contract है।
जबकि कुछ अन्य विधिवेत्ता मानते हैं कि मुस्लिम विवाह एक धार्मिक संस्कार है।
Muslim Marriage as a Civil Contract
Legal Aspect
कुछ विधिवेत्ता ने मुस्लिम विवाह को केवल Civil Contract बताया है और उनके अनुसार यह धार्मिक संस्कार नहीं है यह विचार इस तथ्य पर आधारित है कि Contract के सभी आवश्यक तत्व (Essential Elements) मुस्लिम विवाह में मिलते हैं जैसे-
1)Proposal & Acceptance (प्रस्ताव एवं स्वीकृति)-
विवाह में Contract के समान है 'Contract Ijab' यानी प्रस्ताव (Proposal) एक पक्ष द्वारा और दूसरे पक्ष द्वारा 'कबूल' यानी स्वीकृति Acceptance होना आवश्यक है।
2)Free Consent (स्वतंत्र सहमति)-
विवाह कभी भी बिना स्वतंत्र सहमति के नहीं हो सकता है अर्थात ऐसी सहमति जो Undue Influence, Fraud, Coercion, Misrepresentations द्वारा प्राप्त नहीं की गई हो।
3)Consideration (प्रतिफल) -
मुस्लिम विवाह में मेहर संविदा (Contract) के Consideration (प्रतिफल) के समान होता है।
4)Competency Of the Parties Of Contract (संविदा के पक्षकारों की सक्षमता)-।
यदि कोई संविदा (Contract) अवयस्क (Minor) की ओर से उसका अभिभावक करता है
तब अवयस्क (Minor) को यह अधिकार है कि जब वह वयस्क (Major) हो जाए
तब वह उसे निरस्त कर सकता है।
इसी प्रकार Muslim Marriage में यदि Marriage अवयस्कता की अवस्था (Age of Minority) में अभिभावक की सहमति से हुआ हो तो वयस्क (Major) होने के बाद शादी निरस्त की जा सकती है।
5)Agreement यदि Muslim Marriage के पक्षकार Marriage Contract के बाद कोई करार (Agreement) करते हैं, जोकि युक्तियुक्त (Reasonable) हो और मुस्लिम विधि (Muslim Law) की नीतियों (policies) के विरुद्ध ना हो, तो वह (Agreement) विधि द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) होता है और यही स्थिति Contract में भी होती है।
RELATED CASES
ABDUL KADIR V SALIMA
अब्दुल कादिर बनाम सलीमा
इस बाद में न्यायाधीश महमूद ने कहा "मुस्लिमों में विवाह शुद्धतः एक संविदा (Contract) है यह कोई धार्मिक संस्कार नहीं है"
Muslim Marriage as a Religious Sacrament
Social Aspect
कोई व्यक्ति एक साथ ही अनगिनत Contracts कर सकता है।
लेकिन Muslim Law के अंतर्गत एक पुरुष 4 से अधिक स्त्रियों से विवाह नहीं कर सकता है।
Religious Aspect
Muslim Law में विवाह का धार्मिक पहलू भी है। कुरान में प्रत्येक सक्षम मुस्लिम को अपनी इच्छित स्त्री से विवाह करने का निर्देश दिया गया है।
अतः बिना किसी उचित कारण के अविवाहित (Unmarried) रह जाना, कुरान में दिए निर्देशों का उल्लंघन है व अधार्मिक कृत्य (Non-Religious Act) है।
स्वयं मोहम्मद पैगंबर ने भी विवाह किया था।
अतः यह पैगंबर मोहम्मद का सुन्नत है।
जिसका अनुसरण करना प्रत्येक मुस्लिम का धार्मिक कर्तव्य है।
Conclusion
अनीस बेगम बनाम मुस्तफा हुसैन
इस केस में न्यायाधीश शाह सुलेमान ने एक अत्यंत संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए, यह निर्धारित किया कि मुस्लिम विवाह ना तो पूर्णता Civil Contract है और ना ही Religious Sacrament (धार्मिक संस्कार)।
बल्कि दोनों का सम्मिश्रण है।
(मुस्लिम विवाह की प्रकृति)
मुस्लिम विवाह की प्रकृति के विषय में विधिवेत्ताओं के भिन्न-भिन्न विचार हैं।
कुछ मानते हैं मुस्लिम विवाह पूरी तरह से Civil Contract है।
जबकि कुछ अन्य विधिवेत्ता मानते हैं कि मुस्लिम विवाह एक धार्मिक संस्कार है।
Muslim Marriage as a Civil Contract
Legal Aspect
कुछ विधिवेत्ता ने मुस्लिम विवाह को केवल Civil Contract बताया है और उनके अनुसार यह धार्मिक संस्कार नहीं है यह विचार इस तथ्य पर आधारित है कि Contract के सभी आवश्यक तत्व (Essential Elements) मुस्लिम विवाह में मिलते हैं जैसे-
1)Proposal & Acceptance (प्रस्ताव एवं स्वीकृति)-
विवाह में Contract के समान है 'Contract Ijab' यानी प्रस्ताव (Proposal) एक पक्ष द्वारा और दूसरे पक्ष द्वारा 'कबूल' यानी स्वीकृति Acceptance होना आवश्यक है।
2)Free Consent (स्वतंत्र सहमति)-
विवाह कभी भी बिना स्वतंत्र सहमति के नहीं हो सकता है अर्थात ऐसी सहमति जो Undue Influence, Fraud, Coercion, Misrepresentations द्वारा प्राप्त नहीं की गई हो।
3)Consideration (प्रतिफल) -
मुस्लिम विवाह में मेहर संविदा (Contract) के Consideration (प्रतिफल) के समान होता है।
4)Competency Of the Parties Of Contract (संविदा के पक्षकारों की सक्षमता)-।
यदि कोई संविदा (Contract) अवयस्क (Minor) की ओर से उसका अभिभावक करता है
तब अवयस्क (Minor) को यह अधिकार है कि जब वह वयस्क (Major) हो जाए
तब वह उसे निरस्त कर सकता है।
इसी प्रकार Muslim Marriage में यदि Marriage अवयस्कता की अवस्था (Age of Minority) में अभिभावक की सहमति से हुआ हो तो वयस्क (Major) होने के बाद शादी निरस्त की जा सकती है।
5)Agreement यदि Muslim Marriage के पक्षकार Marriage Contract के बाद कोई करार (Agreement) करते हैं, जोकि युक्तियुक्त (Reasonable) हो और मुस्लिम विधि (Muslim Law) की नीतियों (policies) के विरुद्ध ना हो, तो वह (Agreement) विधि द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) होता है और यही स्थिति Contract में भी होती है।
RELATED CASES
ABDUL KADIR V SALIMA
अब्दुल कादिर बनाम सलीमा
इस बाद में न्यायाधीश महमूद ने कहा "मुस्लिमों में विवाह शुद्धतः एक संविदा (Contract) है यह कोई धार्मिक संस्कार नहीं है"
Muslim Marriage as a Religious Sacrament
Social Aspect
कोई व्यक्ति एक साथ ही अनगिनत Contracts कर सकता है।
लेकिन Muslim Law के अंतर्गत एक पुरुष 4 से अधिक स्त्रियों से विवाह नहीं कर सकता है।
Religious Aspect
Muslim Law में विवाह का धार्मिक पहलू भी है। कुरान में प्रत्येक सक्षम मुस्लिम को अपनी इच्छित स्त्री से विवाह करने का निर्देश दिया गया है।
अतः बिना किसी उचित कारण के अविवाहित (Unmarried) रह जाना, कुरान में दिए निर्देशों का उल्लंघन है व अधार्मिक कृत्य (Non-Religious Act) है।
स्वयं मोहम्मद पैगंबर ने भी विवाह किया था।
अतः यह पैगंबर मोहम्मद का सुन्नत है।
जिसका अनुसरण करना प्रत्येक मुस्लिम का धार्मिक कर्तव्य है।
Conclusion
अनीस बेगम बनाम मुस्तफा हुसैन
इस केस में न्यायाधीश शाह सुलेमान ने एक अत्यंत संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए, यह निर्धारित किया कि मुस्लिम विवाह ना तो पूर्णता Civil Contract है और ना ही Religious Sacrament (धार्मिक संस्कार)।
बल्कि दोनों का सम्मिश्रण है।
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Thanks
by Zeenat Siddique
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