मेहर में वृद्धि या कमी (Increase or Decrease in Mehr/Dower)-हिबा-ए-मेहर (Hiba-e-Mehr)
📌पति विवाह के बाद किसी भी समय मेहर में वृद्धि कर सकता है लेकिन पति को मेहर की धनराशि या संपत्ति में कमी करने का अधिकार नहीं है।लेकिन विवाह के बाद पत्नी अपनी स्वतंत्र सहमति से मेहर की पूरी धनराशि छोड़ सकती है, या कम कर सकती है।
📌एक मुस्लिम पत्नी जिसने यौनावस्था की आयु (Age Of Puberty) प्राप्त कर ली है, वह मेहर में पूर्ण या आंशिक रूप से छूट देने में सक्षम है, भले ही उसने Indian Majority Act 1875 के तहत वयस्कता की आयु (Age of Majority) प्राप्त ना की हो।
📌पत्नी के द्वारा मेहर में दी गई छूट को हिबा-ए-मेहर (Hiba-e-Mehr) कहते हैं।
📌पत्नी द्वारा मेहर में दी गई ऐसी छूट स्वतंत्र सहमति (Free Consent) से दी जानी चाहिए।
नूर निशा बनाम ख्वाजा मोहम्मद के वाद में पत्नी ने मेहर की राशि में छूट उस समय दी थी जबकि उसके पति की मृत्यु हो गई थी और उसका मृत शरीर घर में था।
निर्णय हुआ कि उस समय पत्नी, पति की मृत्यु के कारण मानसिक दुख के अधीन थी उस समय दी गई छूट स्वतंत्र सहमति में नहीं कही जा सकती।
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